गांधी की हत्या में RSS की भूमिका थी ?





30 जनवरी 1948 को नाथूराम विनायक गोडसे ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी। इसके बाद हुए मुकदमे में उसे दोषी ठहराया गया और 15 नवंबर 1949 को फांसी दे दी गई। लेकिन गोडसे की मौत के साथ यह विवाद खत्म नहीं हुआ — यह आज भी भारतीय राजनीति और इतिहास की सबसे संवेदनशील बहसों में से एक बना हुआ है।

गोडसे और संघ: जुड़ाव या दूरी?

नाथूराम गोडसे ने 1932 में सांगली (महाराष्ट्र) में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ाव बनाया था। RSS का आधिकारिक रुख यह रहा है कि गांधी की हत्या से पहले गोडसे संघ से अलग हो चुका था। मगर कई इतिहासकार, विश्लेषक और खुद गोडसे का परिवार इस दावे को चुनौती देते हैं।

सात्यकि गोडसे, जो नाथूराम के भाई गोपाल गोडसे के पड़पोते हैं, ने 2016 में ‘इकोनॉमिक टाइम्स’ से कहा:

“नाथूराम ने संघ कभी नहीं छोड़ा था, और न ही संघ ने उससे नाता तोड़ा था।”

गोडसे परिवार के बयानों से उठते सवाल

गोपाल गोडसे की 1993 में आई किताब में भी लिखा है:

“हम दोनों भाई आरएसएस के एक्टिव सदस्य थे। संघ हमारा परिवार जैसा था। गांधी की हत्या के बाद हमने संघ नहीं छोड़ा था।”

हालांकि वे यह भी स्वीकारते हैं कि:

“संघ ने गांधी की हत्या का आदेश नहीं दिया था।”

1942 में RSS से मोहभंग?

गोडसे और तत्कालीन सरसंघचालक एमएस गोलवलकर के बीच मतभेद की बात भी सामने आती है। एक विवाद यह भी रहा कि बाबूराव सावरकर की किताब ‘राष्ट्र मीमांसा’ का अंग्रेजी अनुवाद गोडसे ने किया था, लेकिन क्रेडिट गोलवलकर ने लिया। इसके बाद गोडसे ने 1942 में ‘हिंदू राष्ट्र दल’ नामक अलग संगठन बना लिया।

RSS का दावा है कि गांधी की हत्या के समय गोडसे संगठन का हिस्सा नहीं था। लेकिन संघ से निष्कासन की कोई औपचारिक प्रक्रिया नहीं होने के कारण यह बहस आज भी जारी है।

सावरकर और ‘यशस्वी हो के आना’ वाला बयान


कपूर कमीशन (1966) ने गांधी हत्या की दोबारा जांच की। इसमें वी.डी. सावरकर के बॉडीगार्ड और सचिव ने बताया कि 28 जनवरी 1948 को गोडसे और आप्टे सावरकर से मिलने उनके घर आए थे। उस दिन सावरकर ने उन्हें कहा था:

“यशस्वी हो के आओ।”

कमीशन की रिपोर्ट का निष्कर्ष था:

“These facts are destructive of any theory other than conspiracy to murder by Savarkar and his group.”

कोर्ट में जो नहीं आया, कमीशन ने उठाया

  • 3 साल की जांच

  • 101 गवाह

  • 162 बैठकें

  • नई गवाहियाँ और पुराने दस्तावेज

गांधी की हत्या के पहले और उसके बाद की घटनाएं स्पष्ट संकेत देती हैं कि यह सिर्फ एक ‘व्यक्ति’ का कार्य नहीं था। गोडसे का कोर्ट में दिया गया बयान भी उसकी कट्टर सोच और योजनाबद्धता को दर्शाता है।

गांधी की हत्या: राजनैतिक प्रेरणा या संगठनात्मक जिम्मेदारी?

गोडसे ने कहा था:

“मैं जानता था कि इसके बदले में मुझे नफरत मिलेगी, लेकिन गांधीजी की नीतियां देश के लिए ठीक नहीं थीं।”

यह दर्शाता है कि उसकी सोच अकेली नहीं थी — वह किसी विचारधारा या मानसिकता का प्रतिनिधित्व कर रहा था।

सरदार पटेल और RSS पर उनकी भूमिका

जब नेहरू सरकार RSS को प्रतिबंधित करना चाहती थी, तब सरदार पटेल ने हस्तक्षेप किया। उन्होंने लिखा:

“गांधी की हत्या में RSS की सीधी भूमिका नहीं है। लेकिन उनके कुछ कार्य अनुचित थे।”

RSS को इस शर्त पर छोड़ा गया कि वह सांस्कृतिक संगठन बना रहेगा और राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करेगा।

निष्कर्ष: इतिहास की परछाई जो आज भी हमारे साथ है




नाथूराम गोडसे का नाम और RSS का रिश्ता आज भी बहस, कोर्ट केस, और राजनीतिक हमलों का हिस्सा है। सत्य क्या है — यह शायद समय ही बताएगा, लेकिन यह तय है कि इतिहास की यह छाया भारतीय समाज और राजनीति को आज भी प्रभावित कर रही है।

“अगर मुझे किसी आदमी की गोली से मरना है तो मैं मुस्कुरा के मरूँगा...”
महात्मा गांधी, 28 जनवरी 1948

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  • शीर्षक: “गांधीजी की हत्या और संघ: गोडसे की विरासत का सच?”

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